मिट्टी से बने हैं हम-तुम,मिट्टी में ही मिल जाना है|
खाली हाथ आये थे,साथ क्या लेकर जाना है|
जब तक जीवन है साथी,शिष्टाचार से जीवन बिता लो|
नश्वर देह रूपी यह चोला,यही छोड़कर जाना है||
जीवन का है मूल-मंत्र ये,प्रेम के ढाई आखर पढ़ लो|
जुगाड़ और “व्यवहार” बनाकर,सफलता के नए सोपानें चढ़
लो|
बचपन के दिन भुला न देना,यौवन का उद्देश्य याद रखो|
दूसरों के सुख की ईर्ष्या में,अपना वक़्त न बर्बाद करो||
यौवन से परिपूर्ण यह शरीर,कुछ सालों बाद बुढा हो जायेगा|
अपनी करनी का दुष्प्रभाव,रह-रह कर तुम्हें सतायेगा|
पश्चाताप की अग्नि में,तू जल-जल कर फड़फड़ायेगा |
उसी अग्नि में चिता जलेगी तेरी,और फिर तू गंगा में बह जायेगा||
व्यर्थ हुआ सब जीवन सारा,आ सका देश के काम नहीं|
कब आया और चला गया तू,इसका लोगो को तनिक भी ज्ञान नहीं||
इसलिये,
कर्म तू अपना किये जा बन्धु,फल की चिंता छोड़ दे|
भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ व्यवस्था देकर,राष्ट्र को उन्नति की मोड़ दे|
जीवन सफल होगा तब तेरा,मातृभूमि का ऋण चुक जायेगा|
आँखों से ओझल होगा जरुर तू,पर लोगों के दिलों में हमेशा याद आयेगा||
“स्वच्छ
रहिये,स्वस्थ रहिये”
“भारत माता की जय|जय हिन्द|वन्दे मातरम्|”